मेरी नज़र में नवनीत शर्मा

अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।

Friday, February 6, 2009

तुम्‍हारे शहर की बस

यह बस तुम्‍हारे शहर से आई है

ड्राइवर के माथे पर

पहुँचने की खुशी

थके हुए इंजन की आवाज

धूल से आंख मलते

खिड़कियों के शीशे

सबने यही कहा

दूर बहुत ही दूर है तुम्‍हारा शहर

यह बस देखती है

तुम्‍हारे शहर का सवेरा

मेरे गाँव की साँझ

सवाल पूछता है मन

क्‍या तुम्‍हारा शहर भी उदास होता है

जब कभी पहुँचती है

मेरे गाँव का सवेरा लेकर

तुम्‍हारे शहर की शाम में कोई बस

थकी-माँदी।

(भाई सतपाल ख़्याल के आग्रह पर यह कविता यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। यह कविता यूँ भी नवनीत शर्मा की बेहतरीन कविताओं में एक है। कई वर्ष पहले लिखी यह कविता आज भी कितनी ताज़ा है, आप पढ़कर ख़ुद ही अंदाज़ा लगाईए : प्रकाश बादल)