मेरी नज़र में नवनीत शर्मा

अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।

Sunday, January 4, 2009

पिता जी - शब्दांजलि

1

घरों में बलगती छाती का होना

दीवारों का चौकस

छत का मजबूत होना है।

वही झेलती है

तीरों की धूप

कुरलाणियों की बरखा ।


दुख बस यही कि खिड़कियां

बहुत जल्‍द आसमान

हो जाना चाहती हैं।

2

वक्‍त की चोट से हिले हैं कब्‍जे

खिड़कियों के

खुली हवा का चाव पूरा हो गया

घर मगर कितना अधूरा हो गया

अब छत नहीं मिलती

शब्‍द जहां उतार देते थे रोगन

भाव भी

वह बिस्‍तर खाली है।


3

खूब लड़ी वह जेब

सरसों के तेल की धार से

कोयले की बोरी ले कर

लड़ते रहे वे हाथ

जाड़ों से ।

पिता सोए

बड़के की फीस के हिज्‍जे गुनते

मंझले की मंजिल पर

नींद में बुड़बुड़ाते

और सुबह से भी पहले जाग उठते

छोटा अभी बहुत ही छोटा है

बड़ा होगा न जाने कब

4

डायरियों पर आकृतियां बनाते हैं बच्‍चे

पहनते हैं दादा की ऐनक

जिससे दिखते थे

उर्दू के कुछ मीठे शब्‍द

बच्‍चों को आरता है चक्‍कर

शीशम के बने टेबल लैंप से खलते हैं जगाना-बुझाना

छुटकी के बस्‍ते में पड़े हैं चायनीज पैन के टुकड़े

अब रोकता नहीं कोई

अब टोकता नहीं कोई

5

पिता

उसकी जेब में पड़ी कलम

के कारण विनम्र हो गए हैं उसके शब्‍द

खत्‍म होने को डराते

चावल के पेड़ू ने कर दिया है उसे

सावधान

उदासियों में

बदहवासियों मेंवह सीख गया है बनना

अपना बाप

अपने आप

6

कितने ही साल से खामोश है

चिटिठयों पर

पुतने वाली गोंद

कोई नहीं पूछता

कविता का मिजाज

पिछवाड़े पड़ा बालन

उसकी खपचियां

भूल गई हैं ड्रिफ्टवुड से अपना रिश्‍ता

कोई नहीं कहता

हरियाली से बचना

फूल की तारीफ के बाद

नहीं रुकना फूल के पास

नहाते हुए लगाना नाभी पर तेल

9 comments:

विवेक सिंह said...

बहुत खूब !

Udan Tashtari said...

नहाते हुए लगाना नाभी पर तेल


--वाह वाह!! क्या बात कह गये...गजब..हर पंक्ति!!! जय हो प्रकाश भाई!!

Prakash Badal said...

अरे समीर भाई जय तो हो नवनीत भाई की, जो इतना अच्छा लिखते हैं कि मुझे ब्लॉग बनाने पर विवश कर दिया है, वर्ना इतना समय किस के पास कि किसी का ब्लॉग बनाएं, लेकिन आप जैसे विद्वान पाठक जब टिप्पणी करते हैं तो मेरा प्रयास सार्थक होता दिखता है। आपका धन्यवाद।

ghughutibasuti said...

सोच रही हूँ, इतनी सरल भी नहीं हैं ये कविताएँ कि बहुत सुन्दर कहकर चलती बनूँ। सोच रही हूँ।
घुघूती बासूती

सतपाल ख़याल said...

ऐसा लगता है मानो वक्त १५ बरस पीछे चला गया हो, नवनीत जी के बारे मे क्या कहूँ शब्दों के जादूगर हैं बहुत ही जिंदादिल इन्सान हैं, कमाल हैं कई हुनर हैं इनमे, गायकी, कविता और लहज़ा.
मिलते रहिये और बादल का शुक्रिया इस ब्लाग के लिए. वो कविता हो जाए नवनीत जी जो कोई १५ साल पहले सुनाई थी..उसके गांव की बस..

Navneet Sharma said...

aap sab ka dil se abhaar vyakt karta hoon. aise qadrddan kahan milte hain... Bhai badal ji, lafz nahin hain shukriya ada karne ko. Bhai Satpal ji ki pasandeeda kavita jald padhva raha hoon.

Navneet.

नीरज गोस्वामी said...

नवनीत जी को लेखन कला विरासत में मिली है, कोई हैरत नहीं है की जिस के पिता और बड़े भाई इतने मकबूल शायर हों वो जो लिखेगा अच्छा ही लिखेगा...लेकिन नवनीत जी ने न सिर्फ़ अच्छा लिखा है बल्कि अपनी एक शैली भी विकसित की है जो उन्हें सब से अलग खड़ा करती है...इस नौजवान लेखक से साहित्य को बहुत आशाएं हैं...उन्हें और उनकी लेखनी को नमन...प्रकाश जी बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं....उन्हें ढेरों बधाईयाँ....
नीरज

Navneet Sharma said...

Neeraj Bhai Sahab ki tippaniyan bahut hi manobal badhaati hain. unki soch unke bada hone ki misaal hai. Shukriya.

Navneet.

Navneet Sharma said...

Neeraj Bhai Sahab ki tippaniyan bahut hi manobal badhaati hain. unki soch unke bada hone ki misaal hai. Shukriya.

Navneet.