मेरी नज़र में नवनीत शर्मा

अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।

Wednesday, March 25, 2009

....खुश्बुओं का डेरा है।

उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।

हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।


सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,

झूठ के शहर का सवेरा है।


मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,

तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।


दूर होकर भी पास है कितना,

जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।


जो तुझे तुझ से छीनने आया,

यार मेरा रक़ीब तेरा है।


मैं चमकता हूँ उसके चेहरे पर,

चाँद पर दाग़ का बसेरा है।

10 comments:

रंजना said...

Waah !! Bahut khoobsoorat gazal !!

Anonymous said...

मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,

तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।


दूर होकर भी पास है कितना,

जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।
waah behtarin lajawab gazal

"अर्श" said...

जनाब नवनीत जी के ग़ज़लगोई के क्या कहने... हर कहन तो कहर हो जैसे...

बहोत खूब... आभार

अर्श

MANVINDER BHIMBER said...

उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।
हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।
सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,
झूठ के शहर का सवेरा है।
bahut sunder likha hai

Alpana Verma said...

दूर होकर भी पास है कितना,

जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।
waah! bahut hi sundar gazal hai Navneet ji.

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना ...

गौतम राजऋषि said...

बहुत खूब नवनीत जी खास कर इस शेर के अंदाज़ ने कहीं का न छोड़ा "मैं चमकता हूँ उसके चेहरे पर,

चाँद पर दाग़ का बसेरा है"

वाह...

शुक्रिया प्रकाश भाई

Navneet Sharma said...

aap sabhi ka bahut abahaari hoon. meri ghazal aapne pasand farmayee, shukriya bhai prakash ji ka bhi.
navneet sharma

Navneet Sharma said...

प्रकाश भाई आप के ब्लॉग पर छपना गौरव की बात है . यहाँ एक से बढ़ कर एक कद्रदान हैं. अदब की यही खिदमत है.

नवनीत शर्मा

हरकीरत ' हीर' said...

दूर होकर भी पास है कितना,
जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।

Bhot khoob...!!


जो तुझे तुझ से छीनने आया,
यार मेरा रक़ीब तेरा है।
waah...waah....!!