मेरी नज़र में नवनीत शर्मा

अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।

Tuesday, January 13, 2009

ग़ज़ल

वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ।

हौसले सब ज़मीन हो जाएँ।


ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ,

सच अगर बदतरीन हो जाएँ।


ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ,

हम कहाँ तक महीन हो जाएँ।


ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं,

लोग जब भी मशीन हो जाएँ।


आपको आप ही उठाएँगे,

चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ।

11 comments:

"अर्श" said...

नवनीत जी के द्वारा लिखी ये बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली बहोत खूब रही .....वाह उम्दा रचना..... ढेरो बधाई कुबूल करें प्रकाश जी आप भी नवनीत जी को ढेरो साधुवाद....

अर्श

Navneet Sharma said...

Arsh Bhai ka shukriya. Aapka blog to bala ka zaheen aur khoobsoorat hai. Thanks.

Reetesh Gupta said...

ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं,
लोग जब भी मशीन हो जाएँ।

सुंदर गज़ल के लिये शुभकामनायें...अच्छा लगा

नीरज गोस्वामी said...

लोग जब भी मशीन हो जायें....सुभान अल्लाह...भाई वाह...बहुत खूब...प्रकाश जी आप इनकी रचनाएँ पढ़वाते रहें...हम तो कायल हो गए इनके लेखन के...
नीरज

Prakash Badal said...

शुक्रिया नीरज भाई जिस आत्मीयता से आप कमैंट ज़्करते हैं मुझमे एक नया जोश आ जाता है। अर्श भाई रितेश और पिंटू भाई का भी शुक्र गुज़ार हूं। पिछले कई दिनों से मैं नवनीत भाई से नई ग़ज़लें माँग रहा हूं और वो दे नहीं रहे हैं मैने नवनीत भाई से वो ग़ज़लें फोन पर सुन ली है और मैं उन्हें ब्लॉग पर देने के लिये उत्सुक हूं। आपका स्नेह बना रहेगा तो मैं ज़िन्दा रहूंगा। नवनीत भाई की ओर से भी आपका शुक्रिया।

Udan Tashtari said...

आनन्द आया नवनीत जी की गज़ल पढ़कर वाकई मानो नवनीत!!!

आपका आभार पढ़वाने का.

Navneet Sharma said...
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Navneet Sharma said...

ritesh ji] pintu ji] udan tashtari aur Bhai Neeraj ji, aaapka dhanyavaad. Aapki pratikriya se hausla badha hai.

सतपाल ख़याल said...

ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ,
हम कहाँ तक महीन हो जाएँ।
jiyo..bahut umda

सतपाल ख़याल said...

बाज़ार ने तहज़ीब को निगला है कुछ ऐसे
चाय की दुकानें भी शराबों के लिए हैं
navneet bhai sat sri akal!!
is she'r par laakhon ashaar kurbaan.
saadar
khyaal

गौतम राजऋषि said...

वाह वाह सर ...क्या खूब..."ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ/हम कहाँ तक महीन हो जाएँ" अनूठा शेर...