ऐसे ख़्याल और ऐसा शब्दकोष अगर किसी के पास हो तो फिर भला कोई किसी का कायल क्यों न हो। नवनीत भाई की ये ग़ज़ल ऐसा ही साबित कर रही है। वाह! नवनीत भाई वाह। ज़ाहिर हैं पाठक मेरे विचारों से सहमत (प्रकाश बादल)
चाय की दुकानें भी शराबों के लिए है
ग़ज़ल
ख्वाबों के लिए हैं न किताबों के लिए हैं
हम रोज-ए-अज़ल से ही अज़ाबों के लिए हैं
चलते भी रहें और मंज़िल नज़र आए
हम अपने ही अंदर के सराबों के लिए हैं
संसद में डटे लोग सवालों के लिए हैं
खेतों में जुटे लोग जवाबों के लिए हैं
बाज़ार ने तहज़ीब को निगला है कुछ ऐसे
चाय की दुकानें भी शराबों के लिए हैं
क्या जाने कहाँ कौन सी सूरत नज़र आए
इस दिल के कई चेहरे नकाबों के लिए हैं
खुशबू ही कहाँ ज़िक्र भी गुम हो गया तेरा
सब याद के पिंजर तो उकाबों के लिए हैं
अब आ गया रास हमको भी सन्नाटे में जीना
हम याद के वीरान खराबों के लिए हैं।
रोज़-ए-अज़ल : पहला दिन, अज़ाब : परेशानी, सराब : रेगिस्तान, खराब : खंडहर
8 comments:
नवनीत जी की कलम को सलाम और आपका धन्यवाद इतनीसुन्दर गजल दिखाने के लिये
बाज़ार ने तहज़ीब को निगला है कुछ ऐसे
चाय की दुकानें भी शराबों के लिए हैं
-बहुत खूब..नवनीत जी की गज़ल बहुत पसंद आई. आभार.
बहुत ख़ूब. उम्दा शेर.
Sachmuch lajawaab !
नवनीत जी की लिखी ग़ज़ल को हमेशा से मेरी पसंदीदा रही है ,बहोत कुछ सिखाता हूँ इनसे,ढेरो बधाई आप दोनों को...
अर्श
बाज़ार ने तहज़ीब को निगला है कुछ ऐसे
चाय की दुकानें भी शराबों के लिए हैं
umda!! ati sundar!! wah! wah!!
"खेतों में जुटे लोग जवाबों के लिए हैं"...वाह क्या शेर हैं। जाने कैसे मैं अब तलक इस ब्लौग से छुटा हुआ था प्रकाश भाई...
नवनीत साब की गज़लें\
दोनों भाई तो एक-से-बढ़कर-एक हैं...
मेरे गाँव की साँझ
सवाल पूछता है मन
क्या तुम्हारा शहर भी उदास होता है
जब कभी पहुँचती है
मेरे गाँव का सवेरा लेकर
तुम्हारे शहर की शाम में कोई बस
थकी-माँदी।
Bahut hi sundar nazam likhi hai aapne. Badhai ho Navneet ji.
Best Regards
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada
punjabiaarsi.blogspot.com
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