मेरी नज़र में नवनीत शर्मा

अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।

Wednesday, May 20, 2009

तुम उधर मत जाना


पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के टांडा मैडिकल कॉलेज में 19 वर्षीय एमबीबीस करने आए छात्र अमनकाचरू को रैगिंग के दानव ने लील दिया उसी विचलित करने वाली दुर्घटना के बाद लिखी गई नवनीत भाई की यह कविता!


अमन काचरू 
(क्षमायाचना के साथ अमन काचरू के लिए)
राजधानी के अपराध आंकड़ों को छोड़
जब चला एक शांत कस्‍बे के लिए

निश्चिंत था मैं।
ठंडी हवाओं ने बताया
यहां सुकुन है,
यहां के लोगों में है कुछ ऐसा कि
देवता का जिक्र आता ही है।
यहां वातावरण में गूंजती है
इनसान को मौत के मुंह से खींच लाने की कसम
भगवान तैयार हो रहे हैं यहां
ग्रामीण चाय की दुकानों पर बतियाते हैं।
लेकिन धूपभरी एक दोपहर
मुझे बताया एक बरगद ने
कि यह जो बस्‍ती है
वहां दिन रात से उतना ही अलग है
जितनी रात होती है अलग दिन से ।
दिन में भयावह दिख़ने वाली खड्डें
रात को तब रहमदिल बिस्‍तर बन जाती हैं
जब यह भगवान बनाने वाली इमारत राक्षसों के अटहास से
गूंजने लगती है।
दिन के जितने हैं मासूम चेहरे
रात को उनके दो दांत बाहर आ जाते हैं
वे डराते हैं, धमकाते हैं,नोचते हैं और लूटते हैं
मुझे नहीं था यकीन
कि मां चामुंडा से मिल कर आती
बनेर खड़ड एक रात मेरा बिस्‍तर बन जाएगी
जब मैने देवताओं को राक्षस बनते देखा था।
मैंने मदद के लिए आवाज लगाई
पर किसी ने मेरे मुंह पर
प्राचार्य दफ्तर का पेपरवेट उठा कर दे मारा
मेरी जीभ छिल गई
मैं चुप हो गया।
मेरे बाजू अभी सलामत थे
मैने दूर देखा 'राघवन कमेटी' की सिफारिश
धौलाधार की चोटी पर चमक रही है
मैने हाथ बढ़ाया
लेकिन इससे पहले ही चार हंसते हुए चेहरों ने
उसे फाड़ कर फेंक दिया।
मैने सोए हुए चौकीदार को जगाया
लेकिन उसके खर्राटों ने बताया
मेरा वार्डन भी सोया हुआ है।
मैंने कागजों से कहा अपना दुख
आकृत्तियां बनाईं,
लिखा, उकेरा
सब कुछ कि मैं कितना बोझ उठाकर कर घिसट रहा हूं।
किसी ने मुझे नहीं देखा
कुछ वर्दियां चमकती रही
कुछ हूटर बजते रहे
जूनियरों के सिर मुंडते रहे
वे नमस्‍ते की मुद्रा में चलते रहे
कुछ लैब कोट खून से सनते रहे।

पर उस रात तो हद ही हो गई
उस रात मेरे सपने तोड़े गए
उस रात मेरा सिर फोड़ा गया
उस रात मुझे पूरे का पूरा तोड़ा गया
और अब मैं कहीं नहीं हूं।

तुम देखो कि
मैं अपने शहर में क्राइम का शिकार नहीं हुआ
मुझे दिल्‍ली की ब्‍लू लाइन ने नहीं रौंदा
मुझे गुड़गांव पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर में नहीं सुलाया
यह जो घर तुम्‍हारा है
मुझे यहां हरियाली ने मारा है
सुनो,
तुम उधर मत जाना।

गांव में हल चला लेना
आटर्स पढ़ लेना
मां-बाप के सपने तोड़ देना
नालायक ही रह जाना
दुकानदारी चला लेना
कुछ भी करना पर
यूं मत मरना
यह मरना नहीं
मारा जाना है।
क्‍योकि मैं भी नहीं चाहता था मरना

यह सब मुझे अमन काचरू ने बताया
जब जाने के कई दिन बाद तक
वह मुझसे बतियाया।