वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ |
हौसले सब ज़मीन हो जाएँ ||
ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ,
सच अगर बदतरीन हो जाएँ |
ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ,
हम कहाँ तक महीन हो जाएँ |
ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं,
लोग जब भी मशीन हो जाएँ |
आपको आप ही उठाएँगे,
चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ |
मेरी नज़र में नवनीत शर्मा
अपने आस-पास, अपने माता-पिता, अपनी मिट्टी से गहरा लगाव, और उतना ही गहरा इस लगाव को अभिव्यक्त करने का हुनर है नवनीत शर्मा के पास। नवनीत का शिल्प अत्यंत प्रभावशाली है। नवनीत की कविताओं में जो धार है वही रवानगी इनकी ग़ज़लों में भी है। और कहने का अंदाज़ जैसा इनका है, किसी-किसी का होता है। मशहूर शायर साग़र ‘पालमपुरी’ के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’ के अनुज भी हैं नवनीत। इन दिनो नवनीत पत्रकारिता से जुड़े हैं लेकिन साहित्य से इनका लगाव आज भी बरकरार है। आपको नवनीत शर्मा की रचनाएं कैसी लगती हैं आप ज़रूर अपनी राय दें- प्रकाश बादल।
4 comments:
खूबसूरत काफ़िये से सजी...और इस शेर के हम तो कब से कायल हैं "ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ/हम कहाँ तक महीन हो जाएँ"
शुक्रिया प्रकाश भाई !
PRAKASH BHAAEE,
BAHOT HI KHUBSURAT GAZAL PADHWAAYA AAPNE NAVNEET JI KA ... HAR SHER LAJAWAAB SAHIB... BAHOT KHUB...JAISA KI GAUTAM BHAAEE NE KAHA HI HAI KHUBSURAT KAFIYE KE SAATH ... ACHHI KASHIDA KAARI.. KAHAN KE KYA KAHANE .. BHAI MAZA AAGAYA...
ARSH
वाह !!! रवानगी लिए बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....आभार.
wah main chamkta hoon uske chehre par
chand par daag ka basera hai
kamaal ka sher bahut sunder gazal
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